Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -20-Oct-2022


कभी दिन में घिसटती है
कभी रातों में जगती है
जिंदगी वैसी कब होती है
जैसी औरों को लगती है।

एक विद्यार्थी वर्षों तक
पढ़ता है मेहनत करता है
एक सपने को पाने के लिए
हर सुख दुःख पानी करता है
फिर कभी सफल हो जाने पर
सब कहते हैं खुशकिस्मत है
पर किसे पता इस सबके लिए
कितनी कुर्बानी लगती है
जिंदगी वैसी नहीं होती
जैसी औरों को लगती है।

महिलाएं सृंगार करती हैं
बिल्कुल करती हैं लेकिन
कब जगती हैं, कब सोती हैं
सबकी जरूरत पूरी करती
अपनी कब वो होती हैं
सबकी खुशियां उसको हैं पता
पर उसकी खुशियां किसे पता
वो बस अच्छा सुनने के लिए
अपने व्यक्तित्व को ठगती है
जिंदगी कब ऐसी होती है
जैसे सबको लगती है।

जो कल तक उच्छृंखल रहता था
उसने जिम्मेदारी समझ लिया
परिवार चलाने की खातिर
अपने जीवन को रगड़ दिया
दुनियाभर की उलझन लेकर
दिनभर उनको सुलझाता है
सारा काम करके हिसाब लगाते
वापस घर को आता है
पत्नी है, मां बाप भी हैं
बच्चों को सफल बनाना है
सबके लिए जमा करके खुद
खाली वापस जाना है
वो तब तक जगता रहता है
जब तक ये दुनिया जगती है
जिंदगी ऐसी कब होती है
जैसी सबको लगती है।

ये मैं भी हूँ
ये तुम भी हो
ये सारी कहानी अपनी है
खुश रहें जहां तक रह पाएं
आखिर जिंदगानी अपनी है।।

दैनिक प्रतियोगिता हेतु





   15
8 Comments

Khan

30-Oct-2022 12:18 AM

Bahut sundar rachna likha hai aapne 👌🌸🌺

Reply

Gunjan Kamal

28-Oct-2022 11:15 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

Reply

Abhinav ji

21-Oct-2022 09:16 AM

Nice 👍

Reply

Anshumandwivedi426

21-Oct-2022 10:00 AM

Thanks

Reply